लेखक : दुर्गा प्रसाद
बिहार विधानसभा चुनाव रण का मैदान बन चुका है। भाजपा, कांग्रेस, जेडीयू, राजग, सपा, लोजपा जहां अपने-अपने कंडीडेटों को लेकर रण में कूद पड़ी थी अब एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन) ने भी ताजा एंट्री मार ली है। अब जहां यह चुनाव दिलचस्प हो गया, वही अब देखना यह होगा कि इस सियासी दंगल में कौन बादशाहद कायम रख पाता है। एआईएमआईएम चीफ ओवैसी ने खुलासा कर दिया है कि उनकी पार्टी सीमांचल (पूर्णिया, सहरसा, किशनगंज, मधेपुरा, कटिहार, अररिया आदि) इलाके से चुनाव लड़ेगी। इसका खास मकसद यह है कि यह मुस्लिम बहुल इलाका है। किशनगंज में तो 48 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं। इसके अलावा, कटिहार में 45 पर्सेंट, अररिया 38 पर्सेंट और पूर्णिया में 35 पर्सेंट मुसलमान वोटर्स हैं। इस इलाके में कुल 37 सीटें हैं। पूर्णिया मंडल में 24 जबकि कोसी मंडल की 13 सीटें।
ओवैसी ने कुछ दिन पहले सीएम नीतीश कुमार और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद पर हमला करते हुए उन्हें सीमांचल इलाके के पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार ठहराया था। ओवैसी ने कहा था कि नीतीश कुमार का सीमांचल के विकास का दावा धोखा और झूठ का पुलिंदा है। यहां पिछड़ापन आज भी बरकरार है। उन्होंने कहा था कि अगर केंद्र सही मायनों में सीमांचल के विकास को लेकर गंभीर होता तो वह उसे रफ्तार देने के लिए संविधान के आर्टिकल 371 के तहत एक स्पेशल डेवलपमेंट कमेटी का गठन किया होता। एमआईएम की स्थापना 1989 में ओवैसी के पिता सुल्तान सलाहउद्दीन ओवैसी ने की थी। वे 6 बार सांसद रहे। उनके बाद ओवैसी 3 बार से सांसद हैं। 26 साल से पार्टी इस सीट पर जीत रही है। तेलंगाना और सीमांध्र में उनकी पार्टी के अभी 14 विधायक हैं।
ओवैसी के एंट्री से अन्य पार्टियों की चिंता बढ़ गई है। जहां भाजपा, कांग्रेस, जेडीयू सहित अन्य दलों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी वहीं मुस्लिम वोटरों को भी अब नए सिरे से सोचना पड़ेगा। वैसे अभी तक सपा, राजद की तरफ मुस्लिम वोटरों का रूझान रहा है। अब ओवैसी की एंट्री से मुस्लिम वोटरों की मंशा भी साफ दिख जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी यह चुनाव किसी समर से कम नहीं है। भाजपा के लिए जहां अपनी स्थायित्व को बढ़ाना होगा, वहीं जेडीयू को अपनी साख बचाने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाना होगा।
कृपया अपने कमेंट्स जरूर दें।
बिहार विधानसभा चुनाव रण का मैदान बन चुका है। भाजपा, कांग्रेस, जेडीयू, राजग, सपा, लोजपा जहां अपने-अपने कंडीडेटों को लेकर रण में कूद पड़ी थी अब एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन) ने भी ताजा एंट्री मार ली है। अब जहां यह चुनाव दिलचस्प हो गया, वही अब देखना यह होगा कि इस सियासी दंगल में कौन बादशाहद कायम रख पाता है। एआईएमआईएम चीफ ओवैसी ने खुलासा कर दिया है कि उनकी पार्टी सीमांचल (पूर्णिया, सहरसा, किशनगंज, मधेपुरा, कटिहार, अररिया आदि) इलाके से चुनाव लड़ेगी। इसका खास मकसद यह है कि यह मुस्लिम बहुल इलाका है। किशनगंज में तो 48 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं। इसके अलावा, कटिहार में 45 पर्सेंट, अररिया 38 पर्सेंट और पूर्णिया में 35 पर्सेंट मुसलमान वोटर्स हैं। इस इलाके में कुल 37 सीटें हैं। पूर्णिया मंडल में 24 जबकि कोसी मंडल की 13 सीटें।
ओवैसी ने कुछ दिन पहले सीएम नीतीश कुमार और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद पर हमला करते हुए उन्हें सीमांचल इलाके के पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार ठहराया था। ओवैसी ने कहा था कि नीतीश कुमार का सीमांचल के विकास का दावा धोखा और झूठ का पुलिंदा है। यहां पिछड़ापन आज भी बरकरार है। उन्होंने कहा था कि अगर केंद्र सही मायनों में सीमांचल के विकास को लेकर गंभीर होता तो वह उसे रफ्तार देने के लिए संविधान के आर्टिकल 371 के तहत एक स्पेशल डेवलपमेंट कमेटी का गठन किया होता। एमआईएम की स्थापना 1989 में ओवैसी के पिता सुल्तान सलाहउद्दीन ओवैसी ने की थी। वे 6 बार सांसद रहे। उनके बाद ओवैसी 3 बार से सांसद हैं। 26 साल से पार्टी इस सीट पर जीत रही है। तेलंगाना और सीमांध्र में उनकी पार्टी के अभी 14 विधायक हैं।
ओवैसी के एंट्री से अन्य पार्टियों की चिंता बढ़ गई है। जहां भाजपा, कांग्रेस, जेडीयू सहित अन्य दलों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी वहीं मुस्लिम वोटरों को भी अब नए सिरे से सोचना पड़ेगा। वैसे अभी तक सपा, राजद की तरफ मुस्लिम वोटरों का रूझान रहा है। अब ओवैसी की एंट्री से मुस्लिम वोटरों की मंशा भी साफ दिख जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी यह चुनाव किसी समर से कम नहीं है। भाजपा के लिए जहां अपनी स्थायित्व को बढ़ाना होगा, वहीं जेडीयू को अपनी साख बचाने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाना होगा।
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