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Happy Rose day my friends....

रात सिमट रही थी। आहिस्ता-आहिस्ता। और वो नौजवान बेचैन था। बिस्तर पर। ख्वाब आँखों से उतरकर जेहन में तूफ़ान की शक्ल ले चुके थे। ठण्ड बहुत थी मगर नसों में खून की रफ़्तार इतनी थी कि बिस्तर तप रहा था। सहसा वो उठा और आलमारी की तरफ लपका। ऐसे जैसे ट्रेन छूट रही हो। कपड़ों के पीछे दोनों हाथ साथ गए और जब वापस लौटे तो एक खिला हुआ गुलाब साथ था। सुकून की गहरी सांस लेने के बाद नौजवान ने जल्दी जल्दी कपडे पहने। शर्ट इन की और शर्ट की दूसरी बटन को खोलकर गुलाब को अंदर डाल लिया। कुछ किताबें उठाईं और बरामदे का रुख किया। बाहर अँधेरा था। शायद सुबह के साढ़े चार हुए होंगे। बाबूजी की बड़ी वाली साईकिल के कैरियर में किताबों को दबाने के बाद बिना आवाज किये घर का गेट खोला। स्टैंड से साईकिल को चुपके से उतारकर बाहर निकल आया और फिर एक राहत भरी सांस ली। 
नौजवान खुद को सँभालने की कोशिश कर रहा था लेकिन डर और एक अजीब से कम्पन को वह खुद पर हावी होता पा रहा था। खैर! उसने ईश्वर को याद किया। कुछ और बुदबुदाया। फिर साईकिल के साथ दौड़कर बैठ गया। पावंडिल और पैरों की रफ़्तार के बीच एक मोड़ पर उसने अचानक ब्रेक लगाई। साईकिल को किनारे स्टैंड पर लगाकर वो आहिस्ता आहिस्ता टहलने लगा। अँधेरा अब भी इतना था कि दस फुट के बाद सब नज़र से ओझल था। लड़का अब गुनगुनाने लगा था।
कभी यादों में आऊं
कभी ख्वाबों में आऊं
तेरी पलकों के साये में आकर झिल्मिलाउं...
मैं वो खूश्बू नहीं जो .... गाना बीच में रुक गया। लड़के के बगल से कोई गुजरा। लेडीज साईकिल से। कोई 18 बरस की। फिर एक गहरी सांस। तेजी से फिर लड़का उसी रफ़्तार से लपका साईकिल की ओर।
सुनसान सड़क पर अब केवल दो साइकिलें दौड़ रही थीं।दोनों की धड़कनें साईकिल के पहियों सी भागे जा रही थीं।चुपचाप। कुछ देर लड़की के पीछे-पीछे चलने के बाद अब लड़का लड़की के बराबर में चलने लगा। लड़की ने झिझकते हुए अचानक देखा। लड़का खामोश था। बिल्कुल चुप। हाँ वो उसे देख रहा था। जैसे आज जी भर देख लेना चाहता हो। करीब से। इतने करीब वो आजतक उस लड़की के न आया था। अचानक दोनों की साईकिल इतनी करीब आ गई की लड़की गिरते गिरते बची। लड़का सकपका गया।
कांपते हुए होंटो से आवाज़ निकली... सॉरी।
लड़की अब भी खामोश थी। लड़के में अब थोड़ी चेतना आ गई। शायद हिम्मत भी। बिना रुके एक सांस में बोल गया। आई लव यू। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।
लड़की अब भी खामोश थी।
दोनों की साइकिलें चल रही थीं अब भी। मगर साथ साथ।
लड़का बस उसका जवाब सुनना चाहता था। ख़ामोशी को को तोड़ते हुए लड़का फिर बोल पड़ा।
कुछ तो बोलो...
मुझसे शादी करोगे...
लड़का निशब्द हो गया। उसने इस सवाल की उम्मीद कतई नहीं की थी।
लड़के की रफ़्तार कम हो गई। लड़की कुछ आगे निकली। खुद को संभलकर लड़के ने पैरों पर पूरा जोर लगा डाला। साईकिल ने फिर रफ़्तार पकड़ी। लड़का अब फिर बराबर में आ चुका था।
हां ... करूँगा शादी।
लड़की ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
अचानक लड़के को कुछ याद आया। दाहिने हाथ ने हैंडिल छोड़ दिया और शर्ट के अंदर से गुलाब का फूल निकाल लिया।
ये तुम्हारे लिए। हैप्पी रोज़ डे।
मैं नहीं ले सकती।
क्यों?
बस नहीं ले सकती।
अब तुम जाओ...
सामने मोड़ के उस पार लड़की का ट्यूशन सेंटर था।
लड़का जनता था। इस मोड़ तक ही साथ था दोनों का।
दोनों साइकिलों का।
वो गुलाब बारहवीं की बायोलोजी की बुक में आज भी वैसे ही है जैसे पिछले साल था। सुर्ख लाल। मगर सुखा हुआ।
-साभार अबरार अहमद
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