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पैसे की चमक में पत्रकारिता बना 'व्यवसाय'

लेखक : दुर्गा प्रसाद

बदलते समय और बदलती सोच के साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन गिरावट आ रही है। इस मुद्दे पर आज देश में गर्मा गरम बहस भी छिड़ चुकी है। देश के लोकतंत्र का मजबूत चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला पत्रकारिता का क्षेत्र भी अब इस भ्रष्टाचार से अछूता नहीं रहा। आज पैसे की चमक ने पत्रकारिता के मिशन को व्यवसाय बना दिया। यही कारण है कि आज देश में भ्रष्टाचार के कारण हाकाहार मचा है। महंगाई आसमान छू रही है। राजनेता, अफसर देश को लूटने में लगे हैं। पूंजीपतियों, राजनेताओं, अफसरो के बड़े-बड़े विज्ञापनो ने पैसे के बल पर आज मीडिया के जरिये आम आदमी की समस्या और उस की उठने वाली आवाज को दबा कर रख दिया गया है।
दूसरा सबसे बड़ा सवाल, आज पत्रकारिता के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन बड़ी तादात में अशिक्षित, कम पढ़े-लिखे और अप्रशिक्षित संवाददाओ की एक बडी दिशाहीन सेना का प्रवेश भी पत्रकारिता के क्षेत्र में भ्रष्टाचार बढ़ाने में बड़ा योगदान दे रहा है। ये वो लोग है जो जेब में कलम लगाकर रोज सुबह शाम सरकारी अफसरों और दफ्तरो के चक्कर काटते रहते हैं। और ये भ्रष्ट अफसर इन लोगों को समय-समय पर विज्ञापन, शराब और भोज का भोग लगाना नही भूलते। क्योंकि आज पत्रकारिता वो पत्रकारिता नहीं रही जब देश की आजादी में पत्रकारिता और पत्रकारों की एक अहम भूमिका हुआ करती थी। अंग्रेजी सरकार के खिलाफ देशवासियो को जागरूक करने में देश के समाचार पत्रों की भूमिका निर्णायक होती थी। उस समय प्रकाशित समाचार पत्र किसी निजी या विदेशी कंपनी के नहीं होते थे बल्कि कुछ सिरफिरे लोग समाचार पत्र या पत्रिका का प्रकाशन देशहित में करते थे।
यह उनका देश प्रेम होता था जो आम आदमी को दुखी होते देख खुद पीड़ा से कांप उठते थे और उन की कलम एक जुनून का रूप धारण कर लेती थी। इस काल के पत्रकार, लेखक, शायर, कवि बेहद सादा गरीबी रेखा से नीचे का जीवन व्यतीत करता था। उसकी समाज में विशेष छवि हुआ करती थी। दिनभर मेहनत मजदूरी करने के बाद शाम को लालटेन की रोशनी में टाटल के कलम और रोशनाई में अपना खून पसीना मिलाकर अपने कलम के जौहर दिखाता था। आज शायद ही देश के किसी कोने में इस तरह के पत्रकार अपनी जीविकोपार्जित करने के बाद पत्रकारिता कर रहे हो। आज यदि देश के मीडिया में व्याप्त भ्रष्टाचार पर नजर डाली जाये तो मालूम होता है कि बड़े स्तर पर तथाकथित रूप से प्रेस से जुड़कर कुछ पूँजीपतियों ने अपने नापाक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये देश के सब से शक्तिशाली संसाधन मीडिया को गुपचुप तरीके से कारपोरेट मीडिया का दर्जा दिला दिया। कारपोरेट मीडिया से मेरी मुराद है मीडिया प्रोडक्शन, मीडिया डिस्ट्रीब्यूशन, मीडिया प्रोपट्री। इन लोगों द्वारा मीडिया में पूंजीनिवेश कर एक ऐसी व्यवस्था बना दी गई है जिस में मल्टीनेशनल उद्योगिक प्रतिष्ठानों तथा व्यापारिक घरानो का होल्ड होता चला गया। इस व्यवस्था में पूंजीनिवेशकों, शेयर होल्डरों और विज्ञापनदाताओं के हितो की रक्षा तथा अधिक से अधिक धन बटौरने के सिद्वांतों पर तेजी से चला जाने लगा और मीडिया के असल मकसद जनहित और राष्ट्रहित को पीछे छोड़ दिया गया। मीडिया में प्रवेश करते ही इन पूंजीपतियों ने प्रेस की विचारधारा बदलने के साथ ही लोगों की सोच भी बदल दी। माहौल को अपनी इच्छापूर्वक बनाने के अलावा व्यापार, उघोग, धर्म, राजनीति, संस्कृति, सभ्यता आज जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नही बचा जिस में मीडिया का प्रयोग वैध या अवैध रूप से न किया जा रहा हो। आज समाचार पत्रों पर विज्ञापनो का प्रभाव इस सीमा तक बढ गया है कि कई समाचार पत्रो में संपादक को समाचार पत्र में विज्ञापन और मालिक के दबाव में अपना संपादकीय तक हटाना पड़ जाता है। वही संपादक लेख और समाचारोंं का चयन पाठक की रूची के अनुसार नही बल्कि विज्ञापन पर उनके प्रभाव के अनुसार करता है।
दरअसल ये सारा का सारा बिगाड़ 1990 से तब फैला जब भारत ने अर्तंराष्ट्रीय मॉनेटरी फण्ड और विश्व बैंक के दबाव में वैश्वीकरण के नाम पर अपने दरवाजे अर्तंराष्ट्रीय कम्पनियों व पूंजीपतियो के लिये खोल दिये। भारत 40-45 करोड़ और लगभग 60 करोड़ से ऊपर अखबारी पाठकों का विश्व का सबसे बड़ा बाजार है इसीलिए कई मल्टीनेशनल कम्पनिया तेजी के साथ भारत में दाखिल हुई और मीडिया के एक बड़े क्षेत्र पर अपना कब्जा जमा लिया। वैश्वीकरण की नीतियों के कारण सरकार का मीडिया पर से नियंत्रण समाप्त हो गया और देश के लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ देश और जनता के हितों की सुरक्षा करने के बजाय चंद पूंजीपतियों की सेवा और इनके हाथों की कठपुतली बन गया। आज समाचार पत्र प्रकाशित करना एक उद्योग का रूप धारण कर चुका है। सरकार को डराने के साथ ही सरकार गिराने और बनाने में भी सहयोग प्रदान करने के साथ ही लोगों के विचारों को दिशाहीन कर उन्हे भटकाने का कार्य भी करने लगा है।
आज किसी नामचीन गुण्डे को सिर्फ चंद घंटो में मीडिया माननीय, सम्मानीय, वरिष्ट समाजसेवी, राजनीतिक गुरू, महापुरूष एक लेख या विज्ञापन के द्वारा बना सकता है। वही आज समचार पत्र और टीवी चैनल ऐसे मुद्दो को ज्यादा महत्व देते है जो विवादित हो। जब से मीडिया का व्यवसायीकरण हुआ है तभी से भ्रष्टाचार ने भी इस क्षेत्र में प्रवेश किया है। क्योंकि व्यवसायीकरण होने के बाद अखबार मालिकों का पत्रकारिता के प्रति नजरिया ही बदल गया। पैसे की चकाचौध में कारपोरेट मीडिया के नजदीक आम आदमी मंहगाई से मरे या भूख से, सरकारी गोदामो के आभाव में गेंहू बारिश में भीगे या जंगली जानवर खाये, सरकार भ्रष्ट हो या ईमानदार समाचार पत्र में मेटर हो या न हो इस से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि आज अखबार मालिकों के ये सब लक्ष्य नहीं है। अधिक से अधिक विज्ञापन की प्राप्ति ही आज हर एक अखबार का असल लक्ष्य हो चुका है। सवाल ये उठता है कि मीडिया का उद्देश्य और लक्ष्य ही जब विज्ञापन प्राप्त करना हो जाये तो फिर सच्ची और मिशन पत्रकारिता का महत्व ही समाप्त हो जाता। क्योंकि जिन लोगों से समाचार पत्र बड़े-बड़े विज्ञापन लेगा उनके खिलाफ वो कैसे लिखेगा। यही कारण है कि आज पैसे की चमक ने पत्रकारिता मिशन को भ्रष्ट और बदनाम करने के साथ ही कुछ पत्रकारों को पत्रकारिता की आड़ में देश का एक बडा़ व्यवसायी बना दिया है।
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